क्या मेरी उलझन है
कैसे तू समझे
जब तुझसे अनबन है
-तूलिका सेठ
कुछ दिन का बाना है
मन पावन कर ले
अब घर को जाना है
-निवेदिताश्री
कलियों ने खिल-खिल के
मौसम महकाया
बगिया में हिलमिल के
-डॉ. नितीन उपाध्ये
कैसी ये ऋतु आई
बगिया में देखो
फैली है तरुणाई
-आभा खरे
कैसा दिन आया है
मीलों कोई नहीं
सन्नाटा छाया है
-ममता मिश्रा
क्या मन में बात कहो
प्यासा मन मेरा
पानी बन आज बहो
-निवेदिताश्री
कुछ अजब तपन सी है
ऐसा क्यूँ लगता ?
भारी उलझन सी है!
-आभा खरे
कण्डे सुलगाती है
सर्दी में माई
लिट्टी महकाती है
-सुधा राठौर
कोयल से पूछ ज़रा
तेरे गीतों में
क्यों इतना दर्द भरा
-शशि पाधा
कँगना कुछ बोल गया
साँसें मौन रहीं
तन मन कुछ डोल गया
-शशि पाधा
कुहरे के आँचल में
अलसाया सूरज
दुबका है बादल में
-सुधा राठौर
क्यों देरी से जागे
ठंडी में सूरज
जल्दी सोने भागे
-सुधा राठौर
कुछ ऐसे दीप जलें
अंतस तम छूटे
सब मिलकर साथ चलें
-सोनम यादव
कारे धुँधुआरे हैं
हलधर को बदरा
प्रानों से प्यारे हैं
-अमिषा अनेजा
कहना सुन ओ! बच्चे
कुछ दिन रुक जा तू
हैं 'पर' तेरे कच्चे
-आभा खरे
कर वादा एक अभी
दारू गुटका को
छूएगा नहीं कभी
-निवेदिताश्री
क्यों चन्दा इठलाता
मुझसे ही रौशन
वो ग्रहण लगा जाता
-सुधा राठौर
कुछ देर अँधेरा है
धीर न खोना मन
उस पार सवेरा है
-विद्या चौहान
कैलाश बना बैठे
वृक्ष शिखर पंछी
हैं ध्यान लगा बैठे
-सोनम यादव
कर लें उनका वंदन
जन्मदिया हमको
पितरों का अभिनंदन
-सोनम यादव