गातीं हैं चौमासा
विरहिन गाँवों में
सावन में मन प्यासा
-जयंती कुमारी
बादल घहराते हैं
कजरी की धुन पर
बूंदें बरसाते हैं
-जयंती कुमारी
सावन झूमे बरसे
तन को सुलगाए
मन विरहिन का तरसे
-जयंती कुमारी
दिन सर्दी के आये
अलसायी धरती
सूरज भी कुम्हलाये
-जयंती कुमारी