जब हिल-मिल जातीं हैं
सास-बहू मिलकर
घर स्वर्ग बनातीं हैं
-डॉ. नितीन उपाध्ये
मानी रूठी सजनी
साजन ने ला दी
जब मोती की नथनी
-डॉ. नितीन उपाध्ये
चूड़ी कंगन बाली
लाई गोरी के
इन गालों पर लाली
-डॉ. नितीन उपाध्ये
सूरज तो जाएगा
ऊर्जा भर मन में
कल वापस आएगा
-डॉ. नितीन उपाध्ये
पर्वत-घाटी छोड़े
सागर से मिलने
नदिया भागे-दौड़े
-डॉ. नितीन उपाध्ये
चिड़ियाँ दाना चुगतीं
पेट भरे जितना
ना संचय कर रखतीं
-डॉ. नितीन उपाध्ये
इस दुनिया की माया
क्षण भर की मितरा
ज्यों बादल की छाया
-डॉ. नितीन उपाध्ये
हम भारत के वासी
मन में रहती है
गंगा, मथुरा, काशी
-डॉ. नितीन उपाध्ये
काग़ज की नावों में
बह के जाता है
मन मेरा गाँवों में
-डॉ. नितीन उपाध्ये
बादल तो बरस गए
साजन सजनी से
मिलने को तरस गए
-डॉ. नितीन उपाध्ये
वो दौलत वाले हैं
हमको क्या करना
हम तो दिल वाले हैं
-डॉ. नितीन उपाध्ये
सच्चाई के आगे
केवल झूठ नहीं
हर पाप यहाँ भागे
-डॉ. नितीन उपाध्ये
होगा जो होना है
सोचे जो कल का
तो ये पल खोना है
-डॉ. नितीन उपाध्ये
छोड़ो दुनियादारी
प्यारी है हमको
बस यारों की यारी
-डॉ. नितीन उपाध्ये
जन्नत जो हो पाना
माँ के क़दमों में
सर रख कर सो जाना
-डॉ. नितीन उपाध्ये
फूलों के खिलने के
आये है मौसम
बागों में मिलने के
-डॉ. नितीन उपाध्ये
बचपन के वो झगड़े
यारों के मुक्के
जब पड़ते थे तगड़े
-डॉ. नितीन उपाध्ये
जब आधी अठन्नी में
बर्फी मिलती थी
चाँदी की पन्नी में
-डॉ. नितीन उपाध्ये
चिड़िया उड़ जायेगी
दाना-दुनका दो
तब वापस आएगी
-डॉ. नितीन उपाध्ये
बेटी की है डोली
खाली कर जाती
माँ-बाबा की झोली
-डॉ. नितीन उपाध्ये