भूखा ही यह जाने
रोटी की खुशबू
लगती है बहकाने
-मीतू कानोडिया
नववर्ष सुहाना है
हों शुभ संकल्पित
लक्ष्यों को पाना है
-मीतू कानोडिया
दिन वर्ष भले बढ़ते
अनुभव यात्रा के
अध्याय नये जुड़ते
-मीतू कानोडिया
नभ की सुर्खी कम है
ठिठुर रहे पाखी
सूरज भी मद्धम है
-मीतू कानोडिया
भूखा बस यह जाने
रोटी की खुशबू
लगती है बहकाने
-मीतू कानोडिया
मकरस्थ हुआ दिनकर
माँ की खिचड़ी की
खुशबू आयी दिनभर
-मीतू कानोडिया
भारत के सेनानी
शौर्य देख इनका
दुश्मन माँगे पानी
-मीतू कानोडिया