गाते हैं हुरियारे
चहक उठे रे मन
होली खेलें सारे
-शेख़ शहज़ाद उस्मानी
गदराई पुरवाई
बहकी फिरती है
प्रेमी-सी पगलाई
-सुषमा चौरे
गेंहूँ गदराया है
बालीं थिरक रहीं
फागुन बौराया है
-डा० जगदीश व्योम
गातीं हैं चौमासा
विरहिन गाँवों में
सावन में मन प्यासा
-जयंती कुमारी
गुड़हल के फूल खिले
माँ के आने के
मोहक संदेश मिले
-अमित खरे
गाँठों का खुल जाना
मन पर बोझ लिये
मुश्किल था जी पाना
-सुधा राठौर
गलता है गल जाए
माटी का पुतला
माटी में मिल जाए
-अचला झा
गुरु-ज्ञान ख़ज़ाना है
जिसने भी पाया
जीवन को जाना है
-सुधा राठौर
गोरी के दो नैना
लूट गए मुझको
बिन बोले कुछ बैना
-सुधा राठौर
गर फूलों से यारी
सहनी पड़ती है
काँटों की दुश्वारी
-सुधा राठौर
गर मैं उड़ जाऊँगा
तरसेगी जल को
पास नहीं आऊँगा
-अचला झा
गाढ़ी हरियाली है
बरखा झूम रही
होकर मतवाली है
-आशा पांडेय
गीतों में, सोहर में
गूँजी चीं चूँ चीं
पेड़ों के कोटर में
-आभा खरे
गुलज़ार करें गुलशन
जूही-बेला सी
बिटियाँ होतीं चंदन
-सोनम यादव
गालों पे जो तिल है
उसमे जा अटका
पागल मेरा दिल है
-अरुन शर्मा
गुरुओं को वंदन है
गुरु का दिन आया
शत-शत अभिनंदन है
-ममता मिश्रा