फिरता बंजारा-सा
भावों के पीछे
मन हारा-हारा सा
-आभा खरे
फूलों संग खिलने की
मिल जाओ साजन
आई रुत मिलने की
-डी के निवातिया
फिर-फिर उड़ आता है
भँवरा कलियों से
गुप-चुप बतियाता है
-आभा खरे
फूलों के खिलने के
आये है मौसम
बागों में मिलने के
-डॉ. नितीन उपाध्ये
फूलों ने बात कही
काँटों में रह कर
हमने मुस्कान गही
-सोनम यादव
फूलों की बस्ती में
भँवरा घूम रहा
अपनी ही मस्ती में
-विद्या चौहान