साये में यादों की
टीस उभरती है
साजन के वादों की
-योगेन्द्र वर्मा
बाजे खन-खन कँगना
साजन आये हैं
नाचूँ मैं घर-अँगना
-योगेन्द्र वर्मा
हरियाली छाई है
ओढ़ हरी चुनरी
धरती इतराई है
-योगेन्द्र वर्मा
सावन के ये झूले
याद दिलाते हैं
लम्हे जो हम भूले
-योगेन्द्र वर्मा
मदमाते प्याले हैं
नयनों की चितवन
सब बरछी-भाले हैं
-योगेन्द्र वर्मा
धरती की सुनती हैं
बरखा की बूँदें
हरियाली बुनती हैं
-योगेन्द्र वर्मा
झूले में सावन के
यादों की बूँदें
साजन मनभावन के
-योगेन्द्र वर्मा
रातों के सन्नाटे
विरहन अँखियों ने
गिन-गिनकर ही काटे
-योगेन्द्र वर्मा