महलों में मधु कलियाँ
रंग-बिरंगी सी
लगतीं चंचल परियाँ
-सुषमा चौरे
गदराई पुरवाई
बहकी फिरती है
प्रेमी-सी पगलाई
-सुषमा चौरे
आँगन भी थे कच्चे
घर थे माटी के
पर रिश्ते थे सच्चे
-सुषमा चौरे
परदेसी घर आजा
बहुत कमाया धन
माँ तकती दरवाजा
-सुषमा चौरे
मौसम करवट बदले
हलचल है मन में
भौरों का दिल मचले
-सुषमा चौरे
नव यौवन फूट रहा
सुप्त पड़े पौधे
आलस अब छूट रहा
-सुषमा चौरे
बासंती मन भाया
दहक रहा टेसू
जंगल है बौराया
-सुषमा चौरे
झिलमिल-झिलमिल तारे
ओस भरी चादर
ओढ़े जंगल सारे
-सुषमा चौरे
आ बैठ करें बातें
लम्बी-लम्बी है
विरहा की ये रातें
-सुषमा चौरे
बचपन की यादों से
दूर चले आये
मजबूत इरादों से
-सुषमा चौरे
आँखों में पानी है
सुख-दुख साथ लिए
गम्भीर कहानी है
-सुषमा चौरे
वो टूट के बिखरी है
माँ तुम जैसी ही
चोटों से निखरी है
-सुषमा चौरे
होली में ख़त मेरे
आज जला देना
फिर लेना तुम फेरे
-सुषमा चौरे
सोना बनकर तपती
निखर रही हर पल
नारी-सी है धरती
-सुषमा चौरे
ये प्रेम भरी नदियाँ
पार उतरने में
लग जाती है सदियाँ
-सुषमा चौरे
ढलती शामें कहतीं
ये जीवन-बाती
बुझती जलती रहतीं
-सुषमा चौरे
अब सोचा, अब कर लो
खबर कहाँ कल की
दुख दूजों का हर लो
-सुषमा चौरे
खट्टे-मीठे-खारे
स्वाद भरा जीवन
महसूस हुए सारे
-सुषमा चौरे