शीतल बयार लाए
सुरभित वे यादें
मन मेरा महकाए
-अचला झा
शासन यूँ चलता था
भेष बदल.. राजा
गलियों में टहलता था
-लक्ष्मी शंकर वाजपेयी
शब्दों को चुन लाता
मेरा मन पाखी
रचना बुनता जाता
-सुधा राठौर
शाखों पर पुष्प नए
पतझड़ वाले दिन
लगता है बीत गए
-शिव मोहन सिंह
शर्मीली गोरी है
नीले नयनों में
लज्जा की डोरी है
-शशि पाधा