मौसम ने हद कर दी
घूम रहा पहने
वो सर्दी की वर्दी
-आभा खरे
मौसम मनरूप लिये
आँगन उतरी है
बासंती धूप प्रिये
-आभा खरे
दिल से दिल मिलते हैं
रंग भरे मौसम
सपनों के खिलते हैं
-आभा खरे
आलम ये मत पूछो
क्या-क्या जतन किये
मिलने को, मत पूछो !
-आभा खरे
आँसू बन कर फूटे
नाज़ुक लम्हें थे
हाथों से जो छूटे !
-आभा खरे
सपनों के गुल बूटे
ख़ुशियों को मेरी
दुनिया तू क्यों लूटे ?
-आभा खरे
कुछ कहते कुछ सुनते
उल्फ़त में हम तुम
इक ख़्वाब हसीं बुनते
-आभा खरे
फिरता बंजारा-सा
भावों के पीछे
मन हारा-हारा सा
-आभा खरे
उड़-उड़कर आता है
भँवरा कलियों से
गुप-चुप बतियाता है
-आभा खरे
अभियान माहिया का
लोक कथाओं से
जोड़े मन दुनिया का
-आभा खरे
पुरवाई रात बही
संग उड़ी लेकर
बातें जो थीं न कही
-आभा खरे
बेमौसम आती है
बारिश फसलों को
चौपट कर जाती है !
-आभा खरे
फिर-फिर उड़ आता है
भँवरा कलियों से
गुप-चुप बतियाता है
-आभा खरे
थोड़ा सा धीर धरो
दूर नहीं हूँ मैं
पलकें तो बंद करो
-आभा खरे
बोली में मिसरी है
सरल सहज हिन्दी
अमिरत की गगरी है
-आभा खरे
सपनों के गाँव-गली
पलकों को मींचे
निंदिया की नाव चली
-आभा खरे
जग दो दिन का मेला
साँस चले जब तक
सुख-दुःख का है खेला
-आभा खरे
कैसी ये ऋतु आई
बगिया में देखो
फैली है तरुणाई
-आभा खरे
राही इक पथ के हम
साथ रहें हर पल
ख़ुशियाँ हों या हो ग़म
-आभा खरे
कुछ अजब तपन सी है
ऐसा क्यूँ लगता ?
भारी उलझन सी है!
-आभा खरे