क्या हँसी-ठिठोली थी
बाबुल के अँगना
हर रुत ही होली थी
-शशि पाधा
होली के रंग उड़े
नयनों की नगरी
सुख सपने आन जुड़े
-शशि पाधा
सुर चैती-होरी के
मीठे गान सजे
अधरों पे गौरी के
-शशि पाधा
रुत छैल छबीली-सी
पनघट आन खड़ी
हर नार सजीली-सी
-शशि पाधा
ढोलक मंजीरा-सा
रंगों से भीजा
तन दमके हीरा-सा
-शशि पाधा
मौसम मनमाना-सा
रह-रह छेड़ रहा
वो गीत सुहाना-सा
-शशि पाधा
मुख लाल गुलाल हुआ
किसको देख लिया
क्यों ऐसा हाल हुआ
-शशि पाधा
जादू संगीत हुआ
पल दो पल में ही
बेगाना मीत हुआ
-शशि पाधा
बूँदें जो झरतीं हैं
आँखों की झीलें
हमसे ही भरतीं हैं
-शशि पाधा
क्यों रोज़ सताते हो
इक पल दिख जाते
दूजे छिप जाते हो
-शशि पाधा
लो कैसे जाएँगे
डोरी प्रीत भरी
हम तोड़ न पाएँगे
-शशि पाधा
सावन को जाने दो
तुम तो रुक जाना
त्योहार मनाने दो
-शशि पाधा
आँखों में भर लेंगे
तुझको मोती सा
पलकों में जड़ लेंगे
-शशि पाधा
यह बात तभी जानूँ
मन के आँचल में
छिप पाओ तो मानूँ
-शशि पाधा
यह खेल पुराना है
आँख मिचौनी को
प्रेमी ने जाना है
-शशि पाधा
हम तो बंजारे हैं
इत-उत फिरते हैं
औरों से न्यारे हैं
-शशि पाधा
ममता की बूँद झरी
माँ तो नित भरती
झोली आशीष भरी
-शशि पाधा
इस जग में न्यारा है
जिस घर माँ रहती
वो ठाकुर द्वारा है
-शशि पाधा
तू धीर ज़रा रखना
कुछ दिन बीतेंगे
भाएगा वो अँगना
-शशि पाधा
बिधना का लेखा है
कैसे समझाऊँ
हाथों की रेखा है
-शशि पाधा