ठिठुराते अंचल में
क्या ये साल नया
सोचे मन चंचल में?
-प्रीति गोविंदराज
संदेश हवा लाये
उनके आँगन की
खुशबू बिखरा जाये
-प्रीति गोविन्दराज
धुन बाजे रागों की
बुनती जब लहरें
झालर ये झागों की
-प्रीति गोविंदराज
लौ देखूँ चाहत की
आँखों में उनके
लूँ साँसें राहत की
-प्रीति गोविंदराज
दोनों पलड़े भारी
पी-घर या पीहर
किस ओर झुके नारी!
आवारा तुम फिरते
हमसे सीखो जो
औरों का हित करते
-प्रीति गोविन्दराज
बूँदें हल्की-हल्की
बरसे प्रेम-सुधा
नभ की गगरी छलकी
-प्रीति गोविंदराज
अच्छा बहलाते हो
यूँ बनकर भोले
झट मुझे गिराते हो
-प्रीति गोविन्दराज
बन जाते हैं जोगी
कह ऊँची बातें
ये वैभव के भोगी
-प्रीति गोविंदराज
मुस्काती अखियों से
बाँधा जो नाता
कह दूँ क्या सखियों से
-प्रीति गोविंदराज
दुखती जोड़ें भूली
खेलूँ पोती सँग
थोड़ी साँसें फूलीं
-प्रीति गोविंदराज
हम जान नहीं पाये
दिल झूठा उनका
सच कह के पछताये
-प्रीति गोविंदराज