रवि राका में झलके
शरद पूर्णिमा है
घट अमृत का छलके
-अमित खरे
झंडे की शान रहे
निज सम्मान रहे
गणतंत्र महान रहे
-अमित खरे
गुड़हल के फूल खिले
माँ के आने के
मोहक संदेश मिले
-अमित खरे
लगतीं बिटिया प्यारी
चहकें चिड़ियों-सी
महकें ज्यों फुलवारी
-अमित खरे
वो साथ निभाते हैं
काँटे हैं अच्छे
जो ना मुरझाते हैं
-अमित खरे
खुद से यूँ दूरी है
दर्पण भी कहता
पहचान अधूरी है
-अमित खरे
सच हारेगा कैसे ?
हारे झूठ सदा,
ऐसे या फिर वैसे
-अमित खरे
बहुमत का ज़माना है
लामबंद कौए
कोयल को हराना है
-अमित खरे
हम तो भोले भाले
पावन ये नैना
तुम ही दिल के काले
-अमित खरे
बरसातें बीत गईं
आये ना साजन
ये अँखियाँ रीत गईं
-अमित खरे
क्यों पीछा करते हो
क्या घर बार नहीं
आवारा फिरते हो !
-अमित खरे
रातें करती उजली
इसकी कदर करो
एक शक्ति है बिजली
-अमित खरे
सरदी का अंत हुआ
सब्ज़ पलाशों पर
असवार बसंत हुआ
-अमित खरे
अदभुत ये शाला है
इसमें पढ़ने का
अनुभव ही निराला है
-अमित खरे
इस कदर उदासी हैं
ताज़ी खुशियाँ भी
लगती अब बासी हैं
-अमित खरे
आलस ऐसा आता
कुछ भी करने का
साहस न जुटा पाता
-अमित खरे
बिजली से जीवित हैं
फ्रिज, कूलर, ऐसी
कम्प्यूटर उर्जित हैं
-अमित खरे
अँखियों की बात चली
अधर न तनिक हिले
अलकों में रात ढली
-अमित खरे
तुझ में अनुरत होकर
ढूँढ लिया तुझ को
हमने ख़ुद को खोकर
-अमित खरे
पल भर मन खुश होता
पर अगले ही पल
अवसाद जकड़ लेता
-अमित खरे