कलियाँ मुस्काती हैं
देख के भँवरे को
खुद पे इतराती हैं
-आलोक मिश्रा
आँखों ही आँखों में
हम दिल दे बैठे
बातों ही बातों में
-आलोक मिश्रा
पौधों पर फूल खिले
अब फल आने के
सुन्दर सन्देश मिले
-आलोक मिश्रा
जाड़े का मौसम है
सर्दी के मारे
सूरज भी गुमसुम है
-आलोक मिश्रा
जिस-जिस ने ज्ञान दिया
सबको ही मैंने
अपना गुरु मान लिया
-आलोक मिश्रा
अम्बर, सागर, धरती
सूरज और हवा
इनसे दुनिया सजती
-आलोक मिश्रा