जंगल धूँ-धूँ जलता
छूटा घर अपना
कोई वश ना चलता
-आभा खरे
तू भी है मतवाला
बैन रसीले हैं
छलका मधु का प्याला
-आभा खरे
कहना सुन ओ! बच्चे
कुछ दिन रुक जा तू
हैं 'पर' तेरे कच्चे
-आभा खरे
जल्दी घर को जाऊँ
भूखे हैं बच्चे
पंखों में गति लाऊँ
-आभा खरे
दूँगी सबको दाना
भूख लगी तुमको
हाँ, मैंने ये माना
-आभा खरे
दुश्मन डाले डेरा
शातिर गिद्धों का
जंगल में है फेरा
-आभा खरे
दाना चुगने जाती
बाहर मत जाना
मैं जब तक ना आती!
-आभा खरे
उठ जा अब भोर हुई
बाहर देख ज़रा
रौनक चहुँ ओर हुई
-आभा खरे
इक नीड़ बना प्यारा
बिस्तर पत्तों का
सूरज का उजियारा
-आभा खरे
चुन-चुन के लाती है
चिड़िया तिनकों से
घर अपना बनाती है
-मधु गोयल
गीतों में, सोहर में
गूँजी चीं चूँ चीं
पेड़ों के कोटर में
-आभा खरे
सुख-दुःख खोना-पाना
जीवन के ढब हैं
हर ढब को अपनाना
-आभा खरे
कितनी हैं बेदर्दी
दिल की सब बातें
इन नैनों ने कह दी
-आभा खरे
नैनों से झरते हैं
तेरे ये आँसू
मन व्याकुल करते हैं
-आभा खरे